EN اردو
बरसों से हूँ मैं ज़मज़मा-परदाज़-ए-मोहब्बत | शाही शायरी
barson se hun main zamzama-pardaz-e-mohabbat

ग़ज़ल

बरसों से हूँ मैं ज़मज़मा-परदाज़-ए-मोहब्बत

मेला राम वफ़ा

;

बरसों से हूँ मैं ज़मज़मा-परदाज़-ए-मोहब्बत
आई न जवाबन कभी आवाज़-ए-मोहब्बत

इक दर्द मोहब्बत है मिरी हर रग-ओ-पय में
हर साँस है अब मेरा इक आवाज़-ए-मोहब्बत

हर-चंद कि हर बज़्म में ठुकराई गई है
आवाज़-ए-मोहब्बत है फिर आवाज़ा-ए-मोहब्बत

मामूर हैं आवाज़-ए-मोहब्बत से फ़ज़ाएँ
मस्तूर है गो साहिब-ए-आवाज़-ए-मोहब्बत

आ जाए ज़रा सीना-ए-आफ़ाक़ में गर्मी
हो जाए ज़रा शो'ला-ज़न आवाज़-ए-मोहब्बत

ये दौर है दौर-ए-हवस इस दौर में ऐ दिल
सुनता नहीं दिल से कोई आवाज़-ए-मोहब्बत

जिस शख़्स के सीने में है दिल की जगह पत्थर
समझेगा वो क्या मा'नी-ए-आवाज़-ए-मोहब्बत

इस दौर-ए-तग-ओ-दौ में वफ़ा कौन सुनेगा
कितनी ही दिल-आवेज़ हो आवाज़-ए-मोहब्बत