बरहमन मुझ को बनाना न मुसलमाँ करना
मेरे साक़ी मुझे मस्त-ए-मय-ए-इरफ़ाँ करना
दाग़-ए-दिल सीने में आहों से नुमायाँ करना
हम से सीखे शब-ए-ग़म कोई चराग़ाँ करना
हरम ओ दैर में जा जा के चराग़ाँ करना
जुस्तुजू तेरी हमें ता-हद-ए-इम्काँ करना
दिल के बहलाने का वहशत में ये सामाँ करना
चश्म-ए-ख़ूँ-बार से दामन को गुलिस्ताँ करना
हवस-ए-सैर-ए-गुलिस्ताँ ने क़फ़स दिखलाया
अब असीरो न कभी क़स्द-ए-गुलिस्ताँ करना
अहल-ए-बे-दाद के जब नाम पुकारे जाएँ
तुम न घबरा के सर-ए-हश्र कहीं हाँ करना
न कभी मैं ने कहा था कि मुझे दर्द मिले
न कहूँगा कि मिरे दर्द का दरमाँ करना
उन के दीवानों को सर फोड़ के दीवारों से
आज मंज़ूर है आराइश-ए-ज़िंदाँ करना
शैख़ को काबा मुबारक हो बरहमन को कुनिश्त
हम को सज्दा तरफ़-ए-कूचा-ए-जानाँ करना
ऐ सबा तुझ को उसी ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ की क़सम
मेरा शीराज़ा-ए-हस्ती भी परेशाँ करना
उन के दीवानों की एजाज़-निगाही देखो
आँख उठाना कि गुलिस्ताँ को बयाबाँ करना
दाग़-ए-दिल पर्दे में रह जाए न ऐ दस्त-ए-जुनूँ
चाक कुछ और अभी मेरा गरेबाँ करना
ला के फिर मिस्र में ऐ इश्क़ किसी यूसुफ़ को
फिर नए रंग से आराइश-ए-ज़िंदाँ करना
दश्त-ए-ग़ुर्बत में तिरे ख़ाक-नशीं अच्छे हैं
चाहिए और इन्हें बे-सर-ओ-सामाँ करना
ज़ौक़-ए-सज्दा तुझे संग-ए-दर-ए-जानाँ की क़सम
होश का मुझ को न शर्मिंदा-ए-एहसाँ करना
उठ रहे हैं मिरे नज़रों से दुई के पर्दे
कुछ मदद और ख़याल-ए-रुख़-ए-जानाँ करना
बन गए हैरत-ए-नज़्ज़ारा की सूरत 'बेदम'
रास आया न हमें दीद का अरमाँ करना
ग़ज़ल
बरहमन मुझ को बनाना न मुसलमाँ करना
बेदम शाह वारसी