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बरबाद न कर उस को ज़रा हाथ पे धर ला | शाही शायरी
barbaad na kar usko zara hath pe dhar la

ग़ज़ल

बरबाद न कर उस को ज़रा हाथ पे धर ला

वाजिद अली शाह अख़्तर

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बरबाद न कर उस को ज़रा हाथ पे धर ला
ऐ बाद-ए-सबा ख़ाक-ए-दर-ए-यार इधर ला

सय्याद से क्या फ़िक्र है ऐ ताइर-ए-मज़मूँ
काग़ज़ के तुझे पर भी लगें काम तो कर ला

ले जा दिल-ए-बेताब निशानी मिरी क़ासिद
सीमाब से है मर्तबा-ए-इश्क़ ख़बर ला

ये कान हैं मुश्ताक़-ए-ख़बर क़ासिद-ए-जानाँ
आँखों को भी दीदार है मंज़ूर-ए-नज़र ला

हसरत है कहीं हसरत-ए-दिल उस की निकाले
इस 'अख़्तर'-ए-ग़मगीं के लिए दीदा-ए-तर ला