बना है अपने आलम में वो कुछ आलम जवानी का
कि उम्र-ए-ख़िज़्र से बेहतर है एक इक दम जवानी का
नहीं बूढ़ों की दाढ़ी पर मियाँ ये रंग वसमे का
किया है उन के एक एक बाल ने मातम जवानी का
ये बूढ़े गो कि अपने मुँह से शैख़ी में नहीं कहते
भरा है आह पर इन सब के दिल में ग़म जवानी का
ये पीरान-ए-जहाँ इस वास्ते रोते हैं अब हर दम
कि क्या क्या इन का हंगामा हुआ बरहम जवानी का
किसी की पीठ कुबड़ी को भला ख़ातिर में क्या लावे
अकड़ में नौजवानी के जो मारे दम जवानी का
शराब ओ गुल-बदन साक़ी मज़े ऐश-ओ-तरब हर-दम
बहार-ए-ज़िंदगी कहिए तो है मौसम जवानी का
'नज़ीर' अब हम उड़ाते हैं मज़े क्या क्या अहा-हा-हा
बनाया है अजब अल्लाह ने आलम जवानी का
ग़ज़ल
बना है अपने आलम में वो कुछ आलम जवानी का
नज़ीर अकबराबादी