बला-कश-ए-ग़म-ए-गेती है जान-ए-ज़ार अभी
हयात सर पे उठाए हुए बार अभी
मिली कहाँ है तुझे तेरी रहगुज़ार अभी
है याँ से दूर बहुत दूर कू-ए-यार अभी
मह-ओ-नुजूम फ़सुर्दा गुल-ओ-समन गिर्यां
है काएनात मिरे ग़म में सोगवार अभी
कहूँ तो कैसे कहूँ उस को दौर-ए-अद्ल-ओ-अता
है दार-ओ-गीर अभी जब्र-ओ-इख़्तियार अभी
बलाएँ आईं सितम पर सितम हुए लेकिन
बदल सका न ज़माना मिरा शिआ'र अभी
सितारे डूब गए शमएँ बुझ गईं जल कर
खुली हुई है मगर चश्म-ए-इन्तिज़ार अभी
दयार-ए-दिल में न जाने है कब से वीरानी
व-लेक शहर-ए-निगाराँ में है बहार अभी
उठो सँवारो निखारो हयात-ए-नौ बख़्शो
उरूस-ए-दहर की आँखों में है ख़ुमार अभी
न नाम लोगे जफ़ाओं का भूल कर भी 'जलील'
नहीं हुए हो जफ़ाओं से हम-कनार अभी

ग़ज़ल
बला-कश-ए-ग़म-ए-गेती है जान-ए-ज़ार अभी
जलील शेरकोटी