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बख़्शिश है तेरी हाथ में दुनिया लिए हुए | शाही शायरी
baKHshish hai teri hath mein duniya liye hue

ग़ज़ल

बख़्शिश है तेरी हाथ में दुनिया लिए हुए

जमील मज़हरी

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बख़्शिश है तेरी हाथ में दुनिया लिए हुए
मैं चुप खड़ा हूँ दीदा-ए-बीना लिए हुए

सहरा को क्या ख़बर कि है हर ज़र्रा-ए-हक़ीर
मुट्ठी में अपनी क़िस्मत-ए-सहरा लिए हुए

उस शाम से डरो जो सितारों की छाँव में
आती हो इक हसीन अंधेरा लिए हुए

ऐ वक़्त इक निगाह कि कब से खड़े हैं हम
आईना-ए-तसव्वुर-ए-फ़र्दा लिए हुए

गुज़रा था इस दयार से सूरज का इक सफ़ीर
हर नक़्श-ए-पा में इक यद-ए-बैज़ा लिए हुए

आया ये कौन साया-ए-ज़ुल्फ़-ए-दराज़ में
पेशानी-ए-सहर का उजाला लिए हुए

लाई थी बे-ख़ुदी जिसे इस दर पे वो 'जमील'
जाता है अब ख़ुदी का जनाज़ा लिए हुए