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बहुत तल्ख़ हैं ज़िंदगी के फ़साने | शाही शायरी
bahut talKH hain zindagi ke fasane

ग़ज़ल

बहुत तल्ख़ हैं ज़िंदगी के फ़साने

मकीन अहसन कलीम

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बहुत तल्ख़ हैं ज़िंदगी के फ़साने
मिरे ख़्वाब हैं फिर भी कितने सुहाने

सहारा न देती अगर मौज-ए-तूफ़ाँ
डुबो ही दिया था हमें ना-ख़ुदा ने

सहर को तो आना है आ कर रहेगी
कटे कैसे लेकिन ये शब कौन जाने

गिरी और गिरती रही बर्क़-ए-सोज़ाँ
बने और बनते रहे आशियाने

सितारों से आगे बहुत कुछ है माना
ज़मीं पर भी जीने के हों कुछ बहाने

'कलीम' आज क्या सोच कर हो गए चुप
अरे आ गए याद कब के ज़माने