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बहुत सोचा किए क्या ज़िंदगी है | शाही शायरी
bahut socha kiye kya zindagi hai

ग़ज़ल

बहुत सोचा किए क्या ज़िंदगी है

नीना सहर

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बहुत सोचा किए क्या ज़िंदगी है
फ़क़त इक धुँद में आवारगी है

तबीअ'त में जो ये शाइस्तगी है
तुम्हारे नाम से वाबस्तगी है

कुरेदा बा'द बरसों के तो देखा
मिरे ज़ख़्मों में अब भी ताज़गी है

किसी के साथ हूँ ऐसे अज़ल से
समुंदर साथ जैसे तिश्नगी है

मिरे ख़्वाबों में अपना घर बना लो
नगर में अब कहाँ पाकीज़गी है

कोई मौसम न लाएगा सवेरा
तुम्हारे ज़ेहन में गर तीरगी है