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बहुत मुश्किल है पास-ए-लज़्ज़त-ए-दर्द-ए-जिगर करना | शाही शायरी
bahut mushkil hai pas-e-lazzat-e-dard-e-jigar karna

ग़ज़ल

बहुत मुश्किल है पास-ए-लज़्ज़त-ए-दर्द-ए-जिगर करना

जमील मज़हरी

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बहुत मुश्किल है पास-ए-लज़्ज़त-ए-दर्द-ए-जिगर करना
किसी से इश्क़ करना और वो भी उम्र भर करना

सर-ए-महफ़िल तिरा वो पुर्सिश-ए-ज़ख़्म-ए-जिगर करना
मिरी जानिब ब-मुश्किल इक नज़र करना मगर करना

मुसल्लम हो गई है बे-इख़्तियारी जज़्ब-ए-बातिन की
मोहब्बत उस से करना जिस से नफ़रत इस क़दर करना

यहाँ बाल-ओ-परी भी एक सूरत है असीरी की
असीर-ए-बाल-ओ-पर हो कर ग़ुरूर-ए-बाल-ओ-पर करना

तुझे हक़ है कि तू पर्दा उठाए रू-ए-रौशन से
कि तेरे हुस्न को आता है तहज़ीब-ए-नज़र करना

बढ़ा कर हाथ तारे आसमाँ से कौन तोड़ेगा
'जमील' इक कार-ए-ना-मुम्किन है तक़लीद-ए-क़मर करना