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बहुत मज़बूत लोगों को भी ग़ुर्बत तोड़ देती है | शाही शायरी
bahut mazbut logon ko bhi ghurbat toD deti hai

ग़ज़ल

बहुत मज़बूत लोगों को भी ग़ुर्बत तोड़ देती है

जावेद नसीमी

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बहुत मज़बूत लोगों को भी ग़ुर्बत तोड़ देती है
अना के सब हिसारों को ज़रूरत तोड़ देती है

झुकाया जा नहीं सकता जिन्हें जब्र-ओ-अदावत से
उन्हें भी इक इशारे में मोहब्बत तोड़ देती है

किसी के सामने जब हाथ फैलाती है मजबूरी
तो उस मजबूर को अंदर से ग़ैरत तोड़ देती है

तरस खाते हैं जब अपने सिसक उठती है ख़ुद्दारी
हर इक ख़ुद्दार इंसाँ को इनायत तोड़ देती है

समुंदर पार जा कर जो बहुत ख़ुश-हाल दिखते हैं
ये उन के दिल से पूछो कैसे हिजरत तोड़ देती है

निभाना दिल के रिश्तों को नहीं है खेल बच्चों का
कि इन शीशों को इक हल्की सी ग़फ़लत तोड़ देती है