EN اردو
बहुत ख़ुद्दार है घुटनों के बल चल कर नहीं आता | शाही शायरी
bahut KHuddar hai ghuTnon ke bal chal kar nahin aata

ग़ज़ल

बहुत ख़ुद्दार है घुटनों के बल चल कर नहीं आता

सुदेश कुमार मेहर

;

बहुत ख़ुद्दार है घुटनों के बल चल कर नहीं आता
वो लिखता है बहुत अच्छा मगर छप कर नहीं आता

मोहब्बत ख़ल्वत-ए-दिल में उतर जाती है चुपके से
ये ऐसा है मरज़ यारो कभी कह कर नहीं आता

रज़ा उस की बहाती है तो पत्तों को किनारा है
मगर ख़ुद तैरता है आदमी बह कर नहीं आता

जो उस के दिल में आता है वही कहता है महफ़िल में
कभी लिख कर नहीं लाता कभी पढ़ कर नहीं आता

बड़े लोगों से मिलता है बहुत मशहूर दुनिया में
वो ऐसा शख़्स कि इल्ज़ाम भी उस पर नहीं आता

फ़क़त क़ाबिल हुआ तो क्या बहुत काफ़ी नहीं इतना
सिफ़ारिश के लिए वो क्यूँ उसे मिल कर नहीं आता