बहुत बे-कार मौसम है मगर कुछ काम करना है
कि ताज़ा ज़ख़्म मिलने तक पुराना ज़ख़्म भरना है
अभी सादा वरक़ पर नाम तेरा लिख के बैठा हूँ
अभी इस में महक आनी है तितली ने उतरना है
बढ़े जो हब्स तो शाख़ें हिला देना कि अब हम को
हवा के साथ जीना है हवा के साथ मरना है
मबादा उस को दिक़्क़त हो निशाने तक पहुँचने में
सो मैं ने फूल से दीवार के रख़्ने को भरना है
यही इक शग़्ल रखना है अज़िय्यत के दिनों में भी
किसी को भूल जाना है किसी को याद करना है
कोई चेहरा न बन पाया मुक़द्दर की लकीरों से
सो अब अपनी हथेली में मुझे ख़ुद रंग भरना है
कोई रस्ता मिले क्यूँकर मिरे पा-ए-ख़जालत को
यहाँ तो पाँव धरना भी कोई इल्ज़ाम धरना है
वो हर लम्हा दुआ देते हैं लम्बी उम्र की 'ताबिश'
मुझे लगता है प्यारों को भी रुख़्सत मैं ने करना है
ग़ज़ल
बहुत बे-कार मौसम है मगर कुछ काम करना है
अब्बास ताबिश