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बहार आई है फिर पैरहन गुलाबी हो | शाही शायरी
bahaar aai hai phir pairahan gulabi ho

ग़ज़ल

बहार आई है फिर पैरहन गुलाबी हो

सफ़दर मीर

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बहार आई है फिर पैरहन गुलाबी हो
वो चाँद आए सर-ए-अंजुमन गुलाबी हो

सियाह रात सी छाई वो ज़ुल्फ़ चेहरे पर
जबीन-ए-नाज़ गुलाबी बदन गुलाबी हो

खुलें जो बंद-ए-क़बा रात जगमगा उठ्ठे
महकती सेज शिकन-दर-शिकन गुलाबी हो

हवा की लरज़िशें दहकातीं आरिज़-ओ-लब को
हया की मौज से सारा बदन गुलाबी हो

वो होंट चुप हों तो आँखों में फूल से झमकें
हिलें तो सारी फ़ज़ा-ए-सुख़न गुलाबी हो

गुलाल इस तरह बरसाए कोई चार तरफ़
चमन गुलाबी हवा-ए-चमन गुलाबी हो

सियाही-ए-शब-ए-हिज्राँ सियाह-तर न करो
जो हो तो चाँद का मेरे गहन गुलाबी हो

वतन से दूर बहारों को खोजने वाले
जो इन दिनों में ज़मीन-ए-वतन गुलाबी हो