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बग़ौर देख रहा है अदा-शनास मुझे | शाही शायरी
baghaur dekh raha hai ada-shanas mujhe

ग़ज़ल

बग़ौर देख रहा है अदा-शनास मुझे

आरज़ू लखनवी

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बग़ौर देख रहा है अदा-शनास मुझे
बस अब ज़लील न कर ऐ निगाह-ए-यास मुझे

ये दिल है शौक़ में बे-ख़ुद वो आँख नश्शे में चूर
झुका न दे सु-ए-साग़र भड़कती प्यास मुझे

उधर मलामत-ए-दुनिया इधर मलामत-ए-नफ़्स
बड़ा अज़ाब है आए हुए हवास मुझे

पलट दो बात न लो मुँह से नाम रुख़्सत का
अभी से घर नज़र आने लगा उदास मुझे

जो मुल्तफ़ित हैं ये नज़रें बदल भी सकती हैं
बना चुका है ज़माना अदा-शनास मुझे