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बढ़ गईं गुस्ताख़ियाँ मेरी सज़ा के साथ साथ | शाही शायरी
baDh gain gustaKHiyan meri saza ke sath sath

ग़ज़ल

बढ़ गईं गुस्ताख़ियाँ मेरी सज़ा के साथ साथ

अज़ीज़ हैदराबादी

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बढ़ गईं गुस्ताख़ियाँ मेरी सज़ा के साथ साथ
प्यार आता है तिरी जौर-ओ-जफ़ा के साथ साथ

ज़ोफ़ से राह-ए-मोहब्बत में क़दम उठते नहीं
पाँव जमते हैं ज़मीं पर नक़्श-ए-पा के साथ साथ

छूट कर कुंज-ए-क़फ़स से निकहत-ए-गुल की तरह
हम भी उड़ कर जाएँगे बाद-ए-सबा के साथ साथ

सर्द आहों से फुंका जाता है सीने में जिगर
आतिश-ए-ग़म तेज़ होती है हवा के साथ साथ

मेरे आँसू भी बहे जोश-ए-मोहब्बत में 'अज़ीज़'
मेरे नाले भी रहे मेरी दुआ के साथ साथ