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बदन को ज़ख़्म करें ख़ाक को लबादा करें | शाही शायरी
badan ko zaKHm karen KHak ko labaada karen

ग़ज़ल

बदन को ज़ख़्म करें ख़ाक को लबादा करें

मंज़ूर हाशमी

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बदन को ज़ख़्म करें ख़ाक को लबादा करें
जुनूँ की भूली हुई रस्म का इआदा करें

तमाम अगले ज़मानों को ये इजाज़त है
हमारे अहद-ए-गुज़िश्ता से इस्तिफ़ादा करें

उन्हें अगर मिरी वहशत को आज़माना है
ज़मीं को सख़्त करें दश्त को कुशादा करें

चलो लहू भी चराग़ों की नज़्र कर देंगे
ये शर्त है कि वो फिर रौशनी ज़ियादा करें

सुना है सच्ची हो नीयत तो राह खुलती है
चलो सफ़र न करें कम से कम इरादा करें