बड़ा बे-दाद-गर वो मह-जबीं है
मगर इतना नहीं जितना हसीं है
तबस्सुम-पाशियाँ अग़्यार पर हैं
हमारे वास्ते चीन-ए-जबीं है
जहाँ में अम्न हो क्यूँ-कर कि हर सू
बपा जंग-ए-बक़ा-ए-बेहतरीं है
नहीं का लफ़्ज़ है कुछ तल्ख़ वर्ना
तुम्हारी हाँ का मतलब भी नहीं है
तिरे मेहमाँ वो आएँ ऐ 'वफ़ा' क्या
अरे तेरा ठिकाना भी कहीं है
ग़ज़ल
बड़ा बे-दाद-गर वो मह-जबीं है
मेला राम वफ़ा