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बड़ा बे-दाद-गर वो मह-जबीं है | शाही शायरी
baDa be-dad-gar wo mah-jabin hai

ग़ज़ल

बड़ा बे-दाद-गर वो मह-जबीं है

मेला राम वफ़ा

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बड़ा बे-दाद-गर वो मह-जबीं है
मगर इतना नहीं जितना हसीं है

तबस्सुम-पाशियाँ अग़्यार पर हैं
हमारे वास्ते चीन-ए-जबीं है

जहाँ में अम्न हो क्यूँ-कर कि हर सू
बपा जंग-ए-बक़ा-ए-बेहतरीं है

नहीं का लफ़्ज़ है कुछ तल्ख़ वर्ना
तुम्हारी हाँ का मतलब भी नहीं है

तिरे मेहमाँ वो आएँ ऐ 'वफ़ा' क्या
अरे तेरा ठिकाना भी कहीं है