बद-सोहबतों को छोड़ शरीफ़ों के साथ घूम
पी ख़ुश-नुमा गिलास से अच्छे लबों को चूम
लहजे को शोख़ चेहरे को ताज़ा बनाए रख
तहसीन की सबा हो कि तज़हीक की सुमूम
मय-ख़ाना-ए-मफ़ाद के मय-कश हैं होश-मंद
मौक़ा से ले ले जाम तवाज़ुन के साथ झूम
बुर्ज-ए-''अमल'' में ''चांस'' के सूरज की कर गिरफ़्त
सड़कें हैं ''ज़ाइचा'' तिरा ये क़ुमक़ुमे नुजूम
ठहरा तो फिर उड़ाएँगी ख़ामोशियाँ मज़ाक़
स्टेज से उतर जो मचे तालियों की धूम
हाँ गुलशन-ए-तलब की इन्हें बुलबुलें समझ
वीराँ-कदे में जिस्म के ये ख़्वाहिशों के बूम
ग़ज़ल
बद-सोहबतों को छोड़ शरीफ़ों के साथ घूम
अब्दुल अहद साज़