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बाज़ औक़ात फ़राग़त में इक ऐसा लम्हा आता है | शाही शायरी
baz auqat faraghat mein ek aisa lamha aata hai

ग़ज़ल

बाज़ औक़ात फ़राग़त में इक ऐसा लम्हा आता है

वसीम ताशिफ़

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बाज़ औक़ात फ़राग़त में इक ऐसा लम्हा आता है
जिस में हम ऐसों को अच्छा-ख़ासा रोना आता है

सब उस शख़्स से मिल कर बिल्कुल ताज़ा-दम हो जाते हैं
फिर उस दिन तस्वीर में सब का चेहरा अच्छा आता है

बाग़ से फूल चुराने वाली लड़की को ये क्या मा'लूम
उस के क़दमों की हर चाप पे फूल को खिलना आता है

हम ये बात बड़े-बूढ़ों से अक्सर सुनते आए हैं
दाएँ हाथ में खुजली हो तो जेब में पैसा आता है

जब भी उस को रिश्ते की तस्वीर दिखाई जाती है
उस के ज़ेहन में फ़ौरन मेरे जैसा लड़का आता है

हम-साए की ऊँची दीवारों से इतना फ़र्क़ पड़ा
पहले घर में धूप आ जाती थी अब साया आता है

इस आवाज़ को सुनने वाले कान मुबारक कहलाते हैं
उन आँखों को देखने वालो ख़्वाब में दरिया आता है