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बातों से सितमगर मुझे बहलाता रहा वो | शाही शायरी
baaton se sitamgar mujhe bahlata raha wo

ग़ज़ल

बातों से सितमगर मुझे बहलाता रहा वो

सरवर मजाज़

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बातों से सितमगर मुझे बहलाता रहा वो
मिलने में तो हर बार ही अपनों सा लगा वो

क्या क्या मिरी ख़्वाहिश के मज़ाक़ उस ने उड़ाए
क्या क्या नहीं देता रहा जीने की सज़ा वो

जब भी कभी उस ने मुझे मक़्तल में सजाया
मुझ को तो बस अपना ही तरफ़-दार लगा वो

जिस ने भी मिरा साथ दिया राह-ए-वफ़ा में
इक शख़्स की दहशत से मुझे छोड़ गया वो

ऐसा कभी देखा न सुना जौर का ख़ूगर
हर बार जफ़ा कर के भी होता था ख़फ़ा वो

करता था मुरव्वत में कभी मश्क़-ए-सितम भी
कहता था मिरे ख़ूँ को कभी रंग-ए-हिना वो