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बातों के नगर से आ रहे हैं | शाही शायरी
baaton ke nagar se aa rahe hain

ग़ज़ल

बातों के नगर से आ रहे हैं

मशकूर हुसैन याद

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बातों के नगर से आ रहे हैं
हम अपने ही घर से आ रहे हैं

लफ़्ज़ों के तुलू'अ कर के आफ़ाक़
मअनी के सफ़र से आ रहे हैं

ख़ामोशियाँ भर के तन-बदन में
हम बर्क़ ओ शरर से आ रहे हैं

तारों के ये जितने क़ाफ़िले हैं
इमकान-ए-सहर से आ रहे हैं

इन अश्कों का दिल से क्या तअल्लुक़
ये शोले जिगर से आ रहे हैं

भीगे हुए ग़म में सर से पा तक
दरिया-ए-हुनर से आ रहे हैं

जितने भी हैं लुत्फ़-ए-जाँ के मौसम
सब दीदा-ए-तर से आ रहे हैं

ये ग़म के तुयूर बे-तहाशा
इक दिल के शजर से आ रहे हैं

'मश्कूर' हैं किस ख़याल में मस्त
बे-ख़ौफ़-ओ-ख़तर से आ रहे हैं