बातिल है हम से दावा शायर को हम-सरी का
दीवान है हमारा कीसा जवाहरी का
चेहरा तिरा सा कब है सुल्तान-ए-ख़ावरी का
चीरा हज़ार बाँधे सर पर जो वो ज़री का
मुँह पर ये गोश्वारा मोती का जल्वा-गर है
जैसे क़िरान-ए-बाहम हो माह ओ मुश्तरी का
आईना-ख़ाने में वो जिस वक़्त आन बैठे
फिर जिस तरफ़ को देखो जल्वा है वाँ परी का
जुज़ शौक़-ए-दिल न पहुँचूँ हरगिज़ ब-कू-ए-जानाँ
ऐ ख़िज़्र कब हूँ तेरी मुहताज रहबरी का
जो देखता है तुझ को हँसता है क़हक़हे मार
ऐ शैख़ तेरा चेहरा मब्दा है मस्ख़री का
तालिब हैं सीम-ओ-ज़र के ख़ूबान-ए-हिन्द 'सौदा'
अहवाल कौन समझे आशिक़ की बे-ज़री का
ग़ज़ल
बातिल है हम से दावा शायर को हम-सरी का
मोहम्मद रफ़ी सौदा