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बानी-ए-शहर-ए-सितम मज़लूम कैसे हो गया | शाही शायरी
bani-e-shahr-e-sitam mazlum kaise ho gaya

ग़ज़ल

बानी-ए-शहर-ए-सितम मज़लूम कैसे हो गया

क़ासिम जलाल

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बानी-ए-शहर-ए-सितम मज़लूम कैसे हो गया
कल जो मुजरिम था वो अब मा'सूम कैसे हो गया

मोहतसिब सच सच बता ख़ल्वत में क्या सौदा हुआ
मुद्दई इंसाफ़ से महरूम कैसे हो गया

ताइर-ए-आज़ाद ज़ेर-ए-दाम कैसे आ गया
वो ख़याल-ए-मुंतशिर मंज़ूम कैसे हो गया

क्यूँ शराफ़त को हिमाक़त का दिया लोगों ने नाम
फ़ित्ना-ए-शर ख़ैर से मौसूम कैसे हो गया

किस तरह अहल-ए-जुनूँ अहल-ए-ख़िरद समझे गए
अक़्ल का दीवानगी मफ़्हूम कैसे हो गया

मुझ से मिलना तो तुझे मुश्किल था ऐ मतलब के यार
अब मिरे घर का पता मा'लूम कैसे हो गया

क्या हैं अस्बाब-ए-ज़वाल-ए-मुस्लिम-ए-आशुफ़्ता-हाल
कल जो हाकिम था वो अब महकूम कैसे हो गया

जो ये कहता था कि मैं हूँ इक निशान-ए-ला-ज़वाल
नक़्श-ए-फ़ानी की तरह मा'दूम कैसे हो गया

बोल ऐ ताइब मिटा नक़्श-ए-सुवैदा किस तरह
लौह-ए-दिल पर लफ़्ज़-ए-हक़ मर्क़ूम कैसे हो गया

क़ौम का क़ाइद है वो जो इस का ख़िदमत-गार है
जिस ने ख़िदमत ही न की मख़दूम कैसे हो गया

भर दिए औहाम किस ने ज़ेहन-ए-मिल्लत में 'जलाल'
चश्मा-ए-आब-ए-बक़ा मस्मूम कैसे हो गया