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बानी-ए-जौर-ओ-जफ़ा हैं सितम-ईजाद हैं सब | शाही शायरी
bani-e-jaur-o-jafa hain sitam-ijad hain sab

ग़ज़ल

बानी-ए-जौर-ओ-जफ़ा हैं सितम-ईजाद हैं सब

अमानत लखनवी

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बानी-ए-जौर-ओ-जफ़ा हैं सितम-ईजाद हैं सब
राहत-ए-जाँ कोई दिलबर नहीं जल्लाद हैं सब

कभी तूबा तिरे क़ामत से न होगा बाला
बातें कहने की ये ऐ ग़ैरत-ए-शमशाद हैं सब

मिज़ा ओ अबरू ओ चश्म ओ निगह ओ ग़म्ज़ा ओ नाज़
हक़ जो पूछो तो मिरी जान के जल्लाद हैं सब

सर्व को देख के कहता है दिल-ए-बस्ता-ए-ज़ुल्फ़
हम गिरफ़्तार हैं इस बाग़ में आज़ाद हैं सब

कुछ है बेहूदा ओ नाक़िस तो 'अमानत' का कलाम
यूँ तो कहने को फ़न-ए-शेर में उस्ताद हैं सब