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बाहर दमकती बर्फ़ में अंदर महकती रात में | शाही शायरी
bahar damakti barf mein andar mahakti raat mein

ग़ज़ल

बाहर दमकती बर्फ़ में अंदर महकती रात में

जमशेद मसरूर

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बाहर दमकती बर्फ़ में अंदर महकती रात में
उस के बदन का फूल है जैसे हवा के हात में

खिड़की से छन्ते चाँद में नज़दीक आतिश-दान के
ज़ुल्फ़ों का साया ओढ़ के बैठी हैं आँखें घात में

उस के लबों से टूट कर सीमाब-ए-मय गिरने लगा
गीले गुलाबों से उड़े जुगनू अँधेरी रात में

इक नीम रौशन कुंज की जादूगरी सिमटी हुई
शानों के सीमीं हर्फ़ में आँखों की नीली बात में

उड़ता हुआ इक लफ़्ज़ सा होंटों ने आँखों से कहा
तहरीर में आने लगा बिखरा हुआ जज़्बात में