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बादल उमडे हैं धुआँ-धार घटा छाई है | शाही शायरी
baadal umDe hain dhuan-dhaar ghaTa chhai hai

ग़ज़ल

बादल उमडे हैं धुआँ-धार घटा छाई है

दत्तात्रिया कैफ़ी

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बादल उमडे हैं धुआँ-धार घटा छाई है
धुएँ तौबा के उड़ाने को बहार आई है

ता कि अंगूर हरे हों मिरे ज़ख़्म-ए-दिल के
धानी अंगिया मिरे दिलदार ने रंगवाई है

तीरा-बख़्ती से हुई मुझ को ये ख़िफ़्फ़त हासिल
दिल-ए-वहशत में सुवैदा की जगह पाई है

ये चलन हैं तो तुम्हें हश्र से देंगे तश्बीह
लोग सफ़्फ़ाक कहेंगे बड़ी रुस्वाई है

मौत को ज़ीस्त समझता हूँ मैं बेताबी से
तिरी फ़ुर्क़त ने ये हालत मिरी पहुँचाई है

सब्र हिज्राँ में करे 'कैफ़ी'-ए-महज़ूँ कब तक
आख़िर ऐ दोस्त कोई हद्द-ए-शकेबाई है