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बादाम दो जो भेजे हैं बटवे में डाल कर | शाही शायरी
baadam do jo bheje hain baTwe mein Dal kar

ग़ज़ल

बादाम दो जो भेजे हैं बटवे में डाल कर

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़

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बादाम दो जो भेजे हैं बटवे में डाल कर
ईमाँ ये है कि भेज दे आँखें निकाल कर

दिल सीने में कहाँ है न तू देख-भाल कर
ऐ आह कह दे तीर का नामा निकाल कर

उतरेगा एक जाम भी पूरा न चाक से
ख़ाक-ए-दिल-ए-शिकस्ता न सर्फ़-ए-कुलाल कर

ले कर बुतों ने जान जब ईमाँ पे डाला हाथ
दिल क्या किनारे हो गया सब को सँभाल कर

तस्वीर उन की हज़रत-ए-दिल खींच लीजे गर
रख देंगे हम भी पाँव पे आँखें निकाल कर

क़ातिल है किस मज़े से नमक-पाश-ए-ज़ख़्म-ए-दिल
बिस्मिल ज़रा तड़प के नमक तो हलाल कर

दिल को रफ़ीक़ इश्क़ में अपना समझ न 'ज़ौक़'
टल जाएगा ये अपनी बला तुझ पे टाल कर