बाद-ए-सबा ये ज़ुल्म ख़ुदा-रा न कीजियो 
इस बेवफ़ा से ज़िक्र हमारा न कीजियो 
ग़म की कमी नहीं है जहान-ए-ख़राब में 
ऐ दिल तरस तरस के गुज़ारा न कीजियो 
ऐ साहब-ए-उरूज तू बाम-ए-उरूज से 
सूरज के डूबने का नज़ारा न कीजियो 
ऐसा न हो कि लोग हमें पूजने लगें 
इतना भी एहतिराम हमारा न कीजियो 
साहिल अगर नसीब भी हो जाए ऐ 'हफ़ीज़' 
तूफ़ाँ से भूल कर भी किनारा न कीजियो
        ग़ज़ल
बाद-ए-सबा ये ज़ुल्म ख़ुदा-रा न कीजियो
हफ़ीज़ मेरठी

