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बाद-ए-सबा ये ज़ुल्म ख़ुदा-रा न कीजियो | शाही शायरी
baad-e-saba ye zulm KHuda-ra na kijiyo

ग़ज़ल

बाद-ए-सबा ये ज़ुल्म ख़ुदा-रा न कीजियो

हफ़ीज़ मेरठी

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बाद-ए-सबा ये ज़ुल्म ख़ुदा-रा न कीजियो
इस बेवफ़ा से ज़िक्र हमारा न कीजियो

ग़म की कमी नहीं है जहान-ए-ख़राब में
ऐ दिल तरस तरस के गुज़ारा न कीजियो

ऐ साहब-ए-उरूज तू बाम-ए-उरूज से
सूरज के डूबने का नज़ारा न कीजियो

ऐसा न हो कि लोग हमें पूजने लगें
इतना भी एहतिराम हमारा न कीजियो

साहिल अगर नसीब भी हो जाए ऐ 'हफ़ीज़'
तूफ़ाँ से भूल कर भी किनारा न कीजियो