EN اردو
ब-नाम-ए-इश्क़ यही एक काम करते हैं | शाही शायरी
ba-nam-e-ishq yahi ek kaam karte hain

ग़ज़ल

ब-नाम-ए-इश्क़ यही एक काम करते हैं

तारिक़ नईम

;

ब-नाम-ए-इश्क़ यही एक काम करते हैं
ये ज़िंदगी का सफ़र उस के नाम करते हैं

अजब नहीं दर-ओ-दीवार जैसे हो जाएँ
हम ऐसे लोग जो ख़ुद से कलाम करते हैं

ये माह-रू भी तो होते हैं आँसुओं की तरह
किसी की आँख में कब ये क़याम करते हैं

ग़ज़ब की धूप है अब के सफ़र में हम-नफ़सो
किसी के साया-ए-गेसू में शाम करते हैं

तुम्ही ने साथ दिया ज़िंदगी की राहों में
किताब-ए-उम्र तुम्हारे ही नाम करते हैं

कुछ इस तरह तिरी आँखों में अश्क हैं जैसे
शब-ए-सियह में सितारे ख़िराम करते हैं

अजीब लोग हैं 'तारिक़-नईम' शहर के भी
ये तीर-ए-हिज्र दिलों में नियाम करते हैं