EN اردو
ब-जुज़ तुम्हारे किसी से कोई सवाल नहीं | शाही शायरी
ba-juz tumhaare kisi se koi sawal nahin

ग़ज़ल

ब-जुज़ तुम्हारे किसी से कोई सवाल नहीं

क़मर जलालवी

;

ब-जुज़ तुम्हारे किसी से कोई सवाल नहीं
कि जैसे सारे ज़माने से बोल-चाल नहीं

ये सोचता हूँ कि तू क्यूँ नज़र नहीं आता
मिरी निगाह नहीं या तिरा जमाल नहीं

तजाहुल अपनी जफ़ाओं पे और महशर में
ख़ुदा के सामने कहते हो तुम ख़याल नहीं

ये कह के जल्वे से बेहोश हो गए मूसा
निगाह उस से मिलाऊँ मिरी मजाल नहीं

मैं हर बहार-ए-गुलिस्ताँ पे ग़ौर करता हूँ
जला न हो मिरा घर ऐसा कोई साल नहीं

ख़ता मुआफ़ कि सरकार मुँह पे कहता हूँ
बग़ैर आईना कह लो मिरी मिसाल नहीं

मैं चाँदनी में बुलाता तो हूँ वो कह देंगे
'क़मर' तुम्हें मिरी रुस्वाई का ख़याल नहीं