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ब-हर-तरीक़ उसे मिस्मार करते रहना है | शाही शायरी
ba-har-tariq use mismar karte rahna hai

ग़ज़ल

ब-हर-तरीक़ उसे मिस्मार करते रहना है

अरशद अब्दुल हमीद

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ब-हर-तरीक़ उसे मिस्मार करते रहना है
कभी सुख़न तो कभी वार करते रहना है

दरों के वास्ते दीवार चाहिए जानाँ
सो फ़र्श-ए-ख़्वाब को दीवार करते रहना है

सहर के मार्का-ए-नेक-ओ-बद से क्या मतलब
हमारा काम तो बेदार करते रहना है

वो एक दर्द जो सैक़ल नहीं हुआ अब तक
उसी को आइना-ए-यार करते रहना है

यही है विरसा-ए-शब्बीर का चलन 'अरशद'
कि हर यज़ीद से इंकार करते रहना है