और क्या आख़िर तुझे ऐ ज़िंदगानी चाहिए
आरज़ू कल आग की थी आज पानी चाहिए
ये कहाँ की रीत है जागे कोई सोए कोई
रात सब की है तो सब को नींद आनी चाहिए
इस को हँसने के लिए तो उस को रोने के लिए
वक़्त की झोली से सब को इक कहानी चाहिए
क्यूँ ज़रूरी है किसी के पीछे पीछे हम चलें
जब सफ़र अपना है तो अपनी रवानी चाहिए
कौन पहचानेगा 'दानिश' अब तुझे किरदार से
बे-मुरव्वत वक़्त को ताज़ा निशानी चाहिए
ग़ज़ल
और क्या आख़िर तुझे ऐ ज़िंदगानी चाहिए
मदन मोहन दानिश