अश्क हुए हैं अबतर ऐसे हम को बहाए देते हैं
तख़्ती कैसी हैफ़ ये लड़के धो के मिटाए देते हैं
एक फँसी ही ज़ुल्फ़ों में इक चाह-ए-ज़क़न हैं डूबी है
दीदा ओ दिल में फूट पड़ी है घर को डुबाए देते हैं
ख़ून करेंगे तुम पर अपना याद रखो इन बातों को
आओ न मिलना ख़ूब नहीं है तुम को जताए देते हैं
ख़ूब जो देखा ख़ूबाँ को कुछ ख़ूब न देखा ऐसे हैं
ग़ैर से मिल कर ख़ाक में हम को मुफ़्त मिलाए देते हैं
लोग 'निसार' अब हम से नाहक़ उन का तफ़हहुस करते हैं
नाम-ओ-निशाँ हम यार का अपने कोई बताए देते हैं
ग़ज़ल
अश्क हुए हैं अबतर ऐसे हम को बहाए देते हैं
मोहम्मद अमान निसार