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अक़्ल-ओ-दिल को मिला-जुला रखिए | शाही शायरी
aql-o-dil ko mila-jula rakhiye

ग़ज़ल

अक़्ल-ओ-दिल को मिला-जुला रखिए

शाहजहाँ बानो याद

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अक़्ल-ओ-दिल को मिला-जुला रखिए
ज़ाब्ते में भी राब्ता रखिए

दूसरा शहर दूसरे साथी
दिल भी सीने में दूसरा रखिए

बंद कर लीजे दर सब आँखों के
ज़ेहन अपना मगर खुला रखिए

इतने पत्थर न फेंकिए साहब
वापसी का तो रास्ता रखिए

कुछ भी जीने की आरज़ू है अगर
जान देने का हौसला रखिए

दिन सदा एक से नहीं रहते
रात आएगी कुछ बचा रखिए

जो हमारे हुए न अपने 'याद'
ऐसे लोगों को याद क्या रखिए