अपनी तक़दीर से बग़ावत की
आज हम ने भी इक इबादत की
कौन है जिस के सर की खाएँ क़सम
किस ने हम से यहाँ मोहब्बत की
और क्या है ये घर का सन्नाटा
एक आवाज़ है मोहब्बत की
हम को मिटना था मिट गए 'नूरी'
चाह में एक बे-मुरव्वत की

ग़ज़ल
अपनी तक़दीर से बग़ावत की
कर्रार नूरी