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अपनी आँखों से जो वो ओझल है | शाही शायरी
apni aankhon se jo wo ojhal hai

ग़ज़ल

अपनी आँखों से जो वो ओझल है

सय्यद अाग़ा अली महर

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अपनी आँखों से जो वो ओझल है
दिल तड़पता है जान बेकल है

फुलजड़ी है इज़ार-बंद नहीं
नाफ़ से पाँव तक झला-झल है

न छलावे में है न बिजली में
तेरी रफ़्तार में जो छलबल है

नाज़ुकी में सफ़ा में बू में वो जिस्म
फूल है आइना है संदल है

डोर तार-ए-शुआअ' है ऐ 'मेहर'
आफ़्ताब उस परी का तक्कल है