अपने तसव्वुरात से आगे निकल गया
कल शब में काएनात से आगे निकल गया
सूरज को देखने के लिए मैं दम-ए-सहर
बे-इख़्तियार रात से आगे निकल गया
वो पत्थरों को करने लगा आईना-सिफ़त
मैं हद-ए-मुम्किनात से आगे निकल गया
मंज़र बहुत खुले मिरी आँखों के सामने
लेकिन मैं वाक़िआ'त से आगे निकल गया
मैं हाँ और इक नहीं के अभी दरमियान हूँ
मेरा वजूद ज़ात से आगे निकल गया

ग़ज़ल
अपने तसव्वुरात से आगे निकल गया
ओसामा अमीर