EN اردو
अपने को तलाश कर रहा हूँ | शाही शायरी
apne ko talash kar raha hun

ग़ज़ल

अपने को तलाश कर रहा हूँ

रईस अमरोहवी

;

अपने को तलाश कर रहा हूँ
अपनी ही तलब से डर रहा हूँ

तुम लोग हो आँधियों की ज़द में
मैं क़हत-ए-हवा से मर रहा हूँ

ख़ुद अपने ही क़ल्ब-ए-ख़ूँ-चकाँ में
ख़ंजर की तरह उतर रहा हूँ

ऐ शहर-ए-ख़याल के मुसाफ़िर
क्या मैं तिरा हम-सफ़र रहा हूँ

दीवार पे दाएरे हैं कैसे
ये कौन है किस से डर रहा हूँ

मैं शबनम-ए-चश्म-ए-तर से ऐ सुब्ह
कल रात भी तर-ब-तर रहा हूँ

इक शख़्स से तल्ख़-काम हो कर
हर शख़्स को प्यार कर रहा हूँ

ऐ दजला-ए-ख़ूँ ज़रा ठहरना
इस राह से मैं गुज़र रहा हूँ

फ़रियाद कि ज़ेर-ए-साया-ए-गुल
मैं ज़हर-ए-ख़िज़ाँ से मर रहा हूँ