अपने होने से भी इंकार किए जाते हैं
हम कि रस्ता तिरा हमवार किए जाते हैं
रोज़ अब शहर में सजते हैं तिजारत मेले
लोग सेहनों को भी बाज़ार किए जाते हैं
डालते हैं वो जो कश्कोल में साँसें गिन कर
कल के सपने भी गिरफ़्तार किए जाते हैं
किस को मालूम यहाँ असल कहानी हम तो
दरमियाँ का कोई किरदार किए जाते हैं
दिल पे कुछ और गुज़रती है मगर क्या कीजे
लफ़्ज़ कुछ और ही इज़हार किए जाते हैं
मेरे दुश्मन को ज़रूरत नहीं कुछ करने की
उस से अच्छा तो मिरे यार किए जाते हैं
ग़ज़ल
अपने होने से भी इंकार किए जाते हैं
जलील ’आली’