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अपने ही ख़ून से इस तरह अदावत मत कर | शाही शायरी
apne hi KHun se is tarah adawat mat kar

ग़ज़ल

अपने ही ख़ून से इस तरह अदावत मत कर

अब्बास दाना

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अपने ही ख़ून से इस तरह अदावत मत कर
ज़िंदा रहना है तो साँसों से बग़ावत मत कर

सीख ले पहले उजालों की हिफ़ाज़त करना
शम्अ' बुझ जाए तो आँधी से शिकायत मत कर

सर की बाज़ार-ए-सियासत में नहीं है क़ीमत
सर पे जब ताज नहीं है तो हुकूमत मत कर

ख़्वाब हो जाम हो तारा हो कि महबूब का दिल
टूटने वाली किसी शय से मोहब्बत मत कर

देख फिर दस्त-ए-ज़रूरत में न बिक जाए ज़मीर
ज़र के बदले में उसूलों की तिजारत मत कर

पुर्सिश-ए-हाल से हो जाएँगे फिर ज़ख़्म हरे
इस से बेहतर है यही मेरी अयादत मत कर

सर झुकाने को ही सज्दा नहीं कहते 'दाना'
जिस में दिल भी न झुके ऐसी इबादत मत कर