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अपने हम-राह जला रक्खा है | शाही शायरी
apne ham-rah jala rakkha hai

ग़ज़ल

अपने हम-राह जला रक्खा है

जमाल एहसानी

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अपने हम-राह जला रक्खा है
ताक़-ए-दिल पर जो दिया रक्खा है

जुम्बिश-ए-लब न सही तेरे ख़िलाफ़
हाथ को हम ने उठा रक्खा है

तू मुझे छोड़ के जा सकता नहीं
छोड़ इस बात में क्या रक्खा है

वो मिला देगा हमें भी जिस ने
आब और गिल को मिला रक्खा है

मुझ को मालूम है मेरी ख़ातिर
कहीं इक जाल बुना रक्खा है

जानता हूँ मिरे क़िस्सा-गो ने
अस्ल क़िस्से को छुपा रक्खा है

आसमानों ने गवाही के लिए
इक सितारे को बचा रक्खा है

काम कुछ इतने हैं करने को 'जमाल'
नाम को कल पे उठा रक्खा है