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अपने बीमार सितारे का मुदावा होती | शाही शायरी
apne bimar sitare ka mudawa hoti

ग़ज़ल

अपने बीमार सितारे का मुदावा होती

राशिद तराज़

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अपने बीमार सितारे का मुदावा होती
दर्द की रात अगर अंजुमन-आरा होती

कुछ तो हो जाती तसल्ली दिल-ए-पज़मुर्दा को
घर की वीरानी जो सामान-ए-तमाशा होती

ज़िंदगी अपनी इस आशुफ़्ता-मिज़ाजी से बनी
ये न होती तो मिरी ज़ात भी सहरा होती

सारी रौनक़ तिरे होने के यक़ीं में है निहाँ
तू न होता तो भला काहे को दुनिया होती

हैं बहुत हुस्न में याँ नादिर-ओ-कमयाब तो लोग
कोई सूरत नहीं ऐसी कि जो यकता होती

रौशनी के लिए फिरते रहे दर दर हम लोग
कोई दहलीज़ तो मेहराब का धोका होती

तेरी ताज़ीम से आग़ाज़ जो करता 'राशिद'
उस की दुनिया तिरे इरफ़ान का गोशा होती