अपना जमाल मुझ कूँ दिखाया रसूल आज
आजिज़ की इल्तिमास कूँ करना क़ुबूल आज
ऐ मेहरबाँ तबीब शिताबी इलाज कर
तेरे बिरह के दर्द सीं है दिल में सूल आज
मरहम तिरे विसाल का लाज़िम है ऐ सनम
दिल में लगी है हिज्र की बर्छी की हूल आज
गुल-रू बग़ैर ख़ाना-ए-बुलबुल ख़राब है
मुरझा रहा है सेहन-ए-गुलिस्ताँ में फूल आज
बे-फ़िक्र हूँ अज़ाब-ए-क़यामत सीं ऐ 'सिराज'
दीन-ए-मोहम्मदी कूँ क्या हूँ क़ुबूल आज
ग़ज़ल
अपना जमाल मुझ कूँ दिखाया रसूल आज
सिराज औरंगाबादी