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अपना अपना समय बता रहे हैं | शाही शायरी
apna apna samay bata rahe hain

ग़ज़ल

अपना अपना समय बता रहे हैं

वसीम ताशिफ़

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अपना अपना समय बता रहे हैं
हम तअ'ल्लुक़ कहाँ निभा रहे हैं

वो भी सब आप का दिया हुआ था
ये भी है आप का जो खा रहे हैं

सो रहे हैं किसी के पहलू में
और तिरा ख़्वाब गुनगुना रहे हैं

उस के चेहरे से सुब्ह उठाई है
उस की आँखों से शब चुरा रहे हैं

दाद वो दे नहीं रहे हैं मगर
मेरे शे'रों से हज़ उठा रहे हैं

वो गली से गुज़र रही है 'वसीम'
मुझ को घर में ख़याल आ रहे हैं