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अंधी राहों की उलझन में बेचारी घबराई रात | शाही शायरी
andhi rahon ki uljhan mein bechaari ghabrai raat

ग़ज़ल

अंधी राहों की उलझन में बेचारी घबराई रात

पैग़ाम आफ़ाक़ी

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अंधी राहों की उलझन में बेचारी घबराई रात
पहले लहू में फिर आँसू में फिर किरनों में नहाई रात

इक पर्दे को उठ जाना था इक चेहरे को आना था
कितनी हसीं थी कितनी दिलकश शर्माई शर्माई रात

हर शाख़-ए-गुल में थी ये नर्मी ग़ुंचे तक गिर जाते थे
आज हर इक टहनी पत्थर है कैसी आँधी लाई रात

एक करिश्मा इक धोका था एक तहय्युर-साज़ी थी
लेकिन इक आलम ने ये समझा कि दिन से टकराई रात

एक नया दर एक नया घर एक नया हंगामा है
एक नए रहज़न के घर इक नया मुसाफ़िर लाई रात