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अमल बर-वक़्त होना चाहिए था | शाही शायरी
amal bar-waqt hona chahiye tha

ग़ज़ल

अमल बर-वक़्त होना चाहिए था

अहमद कमाल परवाज़ी

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अमल बर-वक़्त होना चाहिए था
ज़मीं नम थी तो बोना चाहिए था

समझना था मुझे बारिश का पानी
तुम्हें कपड़े भिगोना चाहिए था

तू जादू है तो कोई शक नहीं है
मैं पागल हूँ तो होना चाहिए था

मैं मुजरिम हूँ तो मुजरिम इसलिए हूँ
मुझे सालिम खिलौना चाहिए था

अगर कट-फट गया था मेरा दामन
तुम्हें सीना पिरोना चाहिए था