EN اردو
अकेले क्या पस-ए-दीवार-ओ-दर गए हम तुम | शाही शायरी
akele kya pas-e-diwar-o-dar gae hum tum

ग़ज़ल

अकेले क्या पस-ए-दीवार-ओ-दर गए हम तुम

अनवर शऊर

;

अकेले क्या पस-ए-दीवार-ओ-दर गए हम तुम
सगान-ए-ख़ुफ़्ता को होश्यार कर गए हम तुम

क़दम क़दम पे अजब बे-हया निगाहों का
हिसार सा नज़र आया जिधर गए हम तुम

गुलों ने ख़ूब पज़ीराई की कि भूले से
किसी चमन में न बार-ए-दिगर गए हम तुम

उमीद-ए-वस्ल के दिन कट गए भटकने में
न होटलों पे यक़ीं था न घर गए हम तुम

हवा-ए-दहर ने सहमा रखा था किस दर्जा
किवाड़ भी कहीं खड़का तो डर गए हम तुम

फ़लक की धुन थी मगर फ़र्श पर हमारे पाँव
जमे न थे कि ख़ला में बिखर गए हम तुम

ज़हे ये हिम्मत-ए-परवाज़ भी मगर अब तो
नशेब में कई ज़ीने उतर गए हम तुम