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अजनबी ठहरे चलो तुम यूँ मगर किस वास्ते | शाही शायरी
ajnabi Thahre chalo tum yun magar kis waste

ग़ज़ल

अजनबी ठहरे चलो तुम यूँ मगर किस वास्ते

इरशाद अरशी

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अजनबी ठहरे चलो तुम यूँ मगर किस वास्ते
बात मौसम की सही पर मुख़्तसर किस वास्ते

क्या तुम्हारे शहर में बस एक मुजरिम हैं हमीं
इस क़दर इल्ज़ाम आए अपने सर किस वास्ते

अब तो लहरों से शनासाई रहेगी उम्र भर
लिख गया वो नाम मेरा रेत पर किस वास्ते

अब खुला है ख़ुद से बढ़ कर कोई सच्चाई नहीं
मुद्दतों ख़ुद से रहे हम बे-ख़बर किस वास्ते

क्या ख़बर थी ऊँघते ज़ेहनों को जो चौंका गई
लग रही है भीड़ सी हर चौक पर किस वास्ते

मेरे पास आएँ तो 'अरशी' चूम कर रख लूँ उन्हें
ख़ुश्क पत्ते उड़ रहे हैं दर-ब-दर किस वास्ते