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अजीब नश्शा है होश्यार रहना चाहता हूँ | शाही शायरी
ajib nashsha hai hoshyar rahna chahta hun

ग़ज़ल

अजीब नश्शा है होश्यार रहना चाहता हूँ

इरफ़ान सिद्दीक़ी

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अजीब नश्शा है होश्यार रहना चाहता हूँ
मैं उस के ख़्वाब में बेदार रहना चाहता हूँ

ये मौज-ए-ताज़ा मिरी तिश्नगी का वहम सही
मैं इस सराब में सरशार रहना चाहता हूँ

सियाह चश्म मिरी वहशतों पे तंज़ न कर
मैं क़ातिलों से ख़बर-दार रहना चाहता हूँ

ये दर्द ही मिरा चारा है तुम को क्या मालूम
हटाओ हाथ मैं बीमार रहना चाहता हूँ

इधर भी आएगी शायद वो शाह-बानू-ए-शहर
ये सोच कर सर-ए-बाज़ार रहना चाहता हूँ

हवा गुलाब को छू कर गुज़रती रहती है
सो मैं भी इतना गुनहगार रहना चाहता हूँ