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अजब इक साया-ए-लाहूत में तहलील होगी | शाही शायरी
ajab ek saya-e-lahut mein tahlil hogi

ग़ज़ल

अजब इक साया-ए-लाहूत में तहलील होगी

रफ़ीक़ संदेलवी

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अजब इक साया-ए-लाहूत में तहलील होगी
फ़ुसून-ए-हश्र से हैअत मिरी तब्दील होगी

किए जाएँगे मेरे जिस्म में नूरी इज़ाफ़े
किसी रौशन सितारे पर मिरी तकमील होगी

दिया जाएगा ग़ुस्ल-ए-अव्वलीं मेरे बदन को
तिलिस्मी-बाग़ होगा उस के अंदर झील होगी

कभी पहुँचेगा हिस्स-ए-सामेआ तक हर्फ़-ए-ख़ुफ़्ता
कभी आवाज़-ए-ना-मालूम की तर्सील होगी

कभी उक़्दे खुलेंगे इस असातीरी ज़मीं के
कभी इस दास्तान-ए-कुहना की तावील होगी